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पुरुष बलात्कारी को फाँसी। महिला बलात्कारी के लिये क्या?

संसद या सासत
संसद या सासत
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पुरुष बलात्कारी को फाँसी। महिला बलात्कारी के लिये क्या?
पुरुष ने महिला के साथ बलात्कार किया। घोर अपराध किया। उसे फाँसी से कम की सजा नहीं होनी चाहिये। उसने क्यों किसी महिला के साथ बलात्कार किया? और यदि बलात्कार किया भी तो किसी महिला के साथ ही क्यों किया? यह तो एक घोर अपराध है। इसके लिए सबसे कठोर क़ानून बनाना चाहिये। ताकि भविष्य में किसी भी पुरुष को किसी महिला के साथ बलात्कार करने की हिम्मत न पड़े। या दूसरे शब्दों में किसी भी पुरुष की हिम्मत न पड़े कि वह बिना किसी महिला की सम्मति के बलात्कार कर सके। या यूँ कहें कि बलात्कार महिला की सहमति से होता है, तो वैध है। अन्यथा इसे दंडनीय अपराध घोषित होना चाहिये। इसमें किसी पुरुष की सहमति या सम्मति की कोई आवश्यकता नहीं है। सिर्फ महिला की सम्मति आवश्यक है। अर्थात महिला ने मुहर लगा दिया तो बलात्कार वैध है। अन्यथा दण्डनीय अपराध है।
दिल्ली में गैंग रेप हुआ। यह सर्वथा अवैध था। हो हल्ला इतना हुआ कि टीवी चैनेल वालो की टीआरपी चवालीस गुना बढ़ गई। कितने निठल्लो के फोटो टीवी पर दिखाई देने लगे। आवारा, निकम्मे एवं अपराधी प्रवृत्ति के लोगो (क्या पुरुष क्या महिला) को गुजर बसर करने का एक अच्छा सहारा मिल गया। कम से कम इसी बहाने दिल्ली जैसे नगर में रात बिताने एवं दिन काटने का एक आधार तो मिल गया। और सबसे बड़ी बात यह कि इसी धरना-प्रदर्शन में अगला शिकार ढूँढने का भी अच्छा एवं सरल-सहज मार्ग मिल गया।
क्या बलात्कार का तात्पर्य जननांगो का परस्पर सम्बन्ध बनाना भर है? यदि ऐसा ही है, तो क्या उसमें औरतो का जननांग सम्मिलित नहीं होता है? अभी यहाँ एक बात स्पष्ट होनी चाहिये। यदि औरतो का जननांग इतना दुर्लभ, कोमल एवं सुकुमार है, तो फिर ये उनका सार्वजनिक प्रदर्शन किस उद्देश्य से करती है? आखिर विविध नायाब तरीकों से अपने इन दुर्लभ अंगो का प्रदर्शन ये महिलायें अपना कौन सा मन्सूबा सिद्ध करना चाहती हैं? पहले औरते साडी के पल्लू से अपना चेहरा छिपा कर चलती थीं। लेकिन इससे बहुत गड़बड़ हो रहा था। कोई उनकी तरफ आकार्षित ही नहीं हो रहा था। फिर चहरे से घूंघट हटा दिया गया। अभी सबको अपना चेहरा प्रदर्शित करने का रास्ता मिल गया। विविध अधरोष्ठ रोगन (लिप स्टिक) लगाकर, नयनो में सूरमा लगाकर उसकी विविध धारदार मनभावन नयन भंगिमा बनाना और उसे सबको दिखाना अब आसान हो गया। इस प्रकार पुरुषो को सरेआम अपनी तरफ आकर्षित करने में थोड़ी सफलता मिली। किन्तु फिर भी मन चाही सफलता अभी नहीं मिल पा रही थी। उसके बाद रास्ता निकाला गया की सलवार-सूट पर चुन्नी डालने से थोड़ी और सफलता मिल सकती है।उसके बाद टॉप-स्कर्ट प्रचलित हुआ। फिर भी उतना ज्यादा काम नहीं बन पा रहा था। क्योकि तब भी छाती को चुन्नी से ढक कर चलना पड़ रहा था। तब चुन्नी को भी उड़ा दिया गया। अभी स्तनों के उभार को दिखाने का रास्ता साफ़ हो गया। और इतना चुस्त पेंट-शर्ट पहनावे में आ गया कि स्तन तो पहले से ही कपडे फाड़ कर बाहर आने को उतावले हो रहे थे। अब नीचे के भी सारे अंग मानो अब कपड़ा फाड़ कर अब बाहर आगये तब बाहर आ गए। और आज ज़रा “दबंग” चलचित्र में नायिका द्वारा गाये जाने वाले इस भाव एवं इसके पीछे छिपे उद्देश्य को देखिये-
“मेरे फोटो को सीने से यार , चिपका ले सैयाँ फेविकोल से”
और गाते समय अपने लगभग पूर्ण नग्न उरोजों को किस तरह हवा में उछाल उछाल एवं नचाकर कर दिखा रही है। इस तरह अर्धनग्न उरोजों को हिला-डुला कर तथा उछाल कर पुरुषो को किस मन्सूबे से दिखाया जाता है? और फिर इस पर देखने वालो की क्या प्रतिक्रया होनी चाहिए?क्या चुस्त पहनावे से बाहर दिखाई दे रहे सारे जननांग एवं कपडे फाड़ कर बाहर आने को उतावले उरोज पुरुषो को इस बात के लिये आमंत्रित करते हैं कि धुप, अगरबत्ती एवम नारियल-प्रसाद लेकर उन पर चढ़ायें और उनकी चालीसा गाकर शंख घंटी बजाएं? औरतो की यह हरकत पुरुषो की काम वासना भड़काने का काम नहीं करती है तो इससे पुरुषो में कौन सी भावना जन्म लेगी? आखिर इस हरकत का क्या मंसूबा है? कौन नहीं जानता है कि “चोली के पीछे क्या है?”. किन्तु फिर भी उसे चोली से ढक कर रखने की परम्परा चली आ रही है। अभी अर्धनग्न उरोज तो दूर, अब तो लग रहा है, इससे भी मनसा पूरी होती नजर नहीं आ रही है। बिकनी तो पहले ही स्थान ले चुकी है। अब अर्धनग्न नहीं बल्कि पूर्ण नग्न होकर पुरुषो को कामोत्तेजित किया जायेगा। और इसीमें जो दबंग किस्म के या अपनी वासना पर काबू पाने में असमर्थ होगें वे लबे सड़क अपनी वासना पूरी करेगें। और जो डरपोक किस्म के होगें वे घर जाकर अपनी मासूम एवं अबोध लड़कियों पर अपने इस भूत को उतारेगें। और इस प्रकार अंत में इस कृत्य को बलात्कार का नाम दे दिया जायेगा।
ऐसे लिबास पहनाना जिससे प्रत्येक गुप्तांग प्रत्यक्ष झलकता दिखाई दे। इस प्रकार पुरुषो को किस बात के लिए आमंत्रित किया जाता है?
यह सब एक झूठ मूठ का हौवा है। औरतें स्वयं घूम घूम कर भड़काऊ लिबास पहन कर, अपने कामुक अंगों का सार्वजनिक प्रदर्शन कर अपने को भोगने के लिये पुरुषो को आमंत्रित करती हैं। हाँ, इतना अवश्य है कि किसी अनजान या लालायित ने ने अपनी हबस मिटा डाली तो बलात्कार हो गया। और यदि “ब्वाय फ्रेंड” ने इन अंगो को मसल डाला तो “प्यार” हो गया।
जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन करने कौन लोग जाते हैं? अस्सी प्रतिशत ऐसे ही अंग प्रदर्शन करवाने वाले एवं करने वाले जाते हैं। दस प्रतिशत इस धरना-प्रदर्शन के सहारे अपने धंधे की रेहड़ी लगाने जाते है। पांच प्रतिशत को जबरदस्ती भीड़ बढाने के लिये पैसा देकर बुलाया जाता है। तथा शेष पांच प्रतिशत टीवी आदि में अपना फोटो दिखवाने एवं नेता बनकर अपनी लोकप्रियता का क्षेत्र बढाने जाते हैं।
यदि ऐसा नहीं है तो गीतिका शर्मा गोपाल कांडा से अपना यौवन क्यों मसलवाती रही? बलात्कार की संज्ञा या यौन उत्पीडन की संज्ञा इसे अंत में क्यों दी गयी? जब मंसूबा पूरा नहीं हुआ तो वह बलात्कार हो गया। पहले यह प्यार था। या यदि यह बलात्कार था तो उसने अर्थात गीतिका ने शुरू शुरू में ही क्यों नहीं हो हल्ला मचाया? और हल्ला ही मचाया तो अंत में क्यों इसे ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया? मधुमिता शुक्ला खूब रंगरेलियाँ मनाती रही। और जब मन भर गया तो क्या तो उसने बताना शुरू किया कि उसका बलात्कार होता रहा। आखिर में यह मसला भी शांत हो गया।
पुरुष कभी बलात्कार नहीं करता है। औरतें उसे ऐसा करने के लिए आमंत्रित या विवश करती हैं। तरह तरह की वेश भूषा एवं भाव भंगिमा से उसे ललचाती हैं। अनेक हथकंडे अपनाती हैं। और अपना बलात्कार करवाती है। ये औरतें पुरुषो को मानसिक रूप से प्रताड़ित करती हैं। उसे घिनौने स्तर तक गिरने के लिए मज़बूर करती हैं। अपनी वेश-भूषा, हाव-भाव एवं चाल-चलन के द्वारा पुरुषों की कामुकता को भड़काती हैं। अपने कामुक अंगो का प्रदर्शन विविध रूप में इस प्रकार करती है ताकि उस अंग का नख-शिख विग्रह रूप में प्रत्यक्ष हो जाय।
बालो को खोल कर चलने की प्रथा शुरू हुई है। यदि बाल बाँध नहीं सकती हो। उसकी चोटी नहीं बना सकती हो। तो फिर उसे रखती ही क्यों हो? उसे सड़को पर लहराते हुए चलने की कला किस भावना, उद्देश्य या मानसिकता की परिचायक है?
दुकानों पर सज धज कर बैठने से ग्राहक सामान खरीदने नहीं बल्कि नैन बलात्कार करने जाता है। व्यक्तिगत सचिव के रूप में षोडशी एवं नवयौवना को ही नियुक्ति दी जाती है। हवाई जहाज में परिचारिकाओं को मनमोहक रूप बनाकर यात्रियों को परसा जाता है। आखिर और कौन सी दूसरी विशेषता इन औरतो में होती है? मात्र और एक मात्र उनका उद्देश्य अपने रूप-सौन्दर्य की मनमोहक थाली में अपनी कामुकता से भरपूर वासनामयी मधुर मुस्कान से लबरेज़ हाव-भाव-भंगिमा को यात्रियों को परोसना ही होता है। क्या यह काम पुरुष परिचारक नहीं कर सकता है? किन्तु पुरुष परिचारक के द्वारा यात्रियों की वह आवश्यकता-पूर्ती नहीं हो सकती है जो एक नवयौवना करती है।
क्या इस बात को वह औरत या सारा समाज नहीं देखता-जानता है?
तो ये औरतें अगर काम वासना को स्वयं भड़काती है तो बलात्कार नहीं तो और क्या उनके कामुक अंगो पर फूल-माला और नारियल-अगरबत्ती चढ़ाया जाएगा?
देखने में ये बहुत ही छोटी छोटी चीजें लगती हैं। और ये अनेक छोटी छोटी चीजें या तथ्य मिल कर एक विशाल रूप धारण कर लेते हैं।
आज सामाजिक ह्त्या जिसका एक छोटा रूप बलात्कार है, का पूरा ज़िम्मेदार औरत जाति है। जितनी भी गिरी हुई हरकतें हैं, उसके जड़ में औरत है। ह्त्या, बलात्कार, तस्करी या विधर्मिता प्रत्येक क्षेत्र में पतन की कारण स्वरूपा ये औरतें ही हैं। कभी भी किसी पारंपरिक परिवेश में अपनी कुल परम्परा एवं मान मर्यादा के अनुकूल आचरण करने वाली एवं अपने मौलिक अस्तित्व के प्रति जागरूक महिला या लड़की का बलात्कार नहीं होता है। और यदि हुआ भी है तो यह काम उन्ही वासना की पीड़ा से पीड़ित कामुकता की आंधी में बह रहे काम पीड़ित द्वारा हुआ है जो कही किसी ऐसी ही वासना परोसने वाली पर अपनी भड़ास नहीं निकाल पाया और घर आकर अपनी बेटी बहन को इस हबस का शिकार बनाता है।
एक बलात्कारी ने तो एक महिला का बलात्कार किया तो उसे फाँसी के सजा की माँग जोर शोर से की जा रही है। किन्तु एक महिला पता नहीं कितने पुरुषो का बलात्कार रोज ही कर रही है। उसके लिए कौन सी सजा विचार की जा रही है?
यह सब शोर गुल, हो हल्ला एवं धरना प्रदर्शन अपना धंधा चमकाने एवं निठल्लो के “टाइम पास” के साधन के अलावा और कुछ नहीं है। क्योकि वास्तविकता से सभी परिचित हैं। किन्तु बिल्ली के गले में घन्टी कौन बांधे?
भारती

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