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बजे दुन्दुभी आज़ादी क़ी.

संसद या सासत
संसद या सासत
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(आदरणीय एवं श्रद्धेय पाठक वृन्द, यद्यपि मै परम पावन अक्षयवट का महिमा-वर्णन करने वाला था. किन्तु अपने उतावलेपन के कारण पहले इसी लेख को पोस्ट कर रहा हूँ. )
यदि ऐसे ही भ्रष्ट सांसद रूपी मूर्तियों के जमावड़े से बने बाड़े को संसद रूपी मंदिर कहा जाता है तों फिर जहाँ पर साधुसंगती हो या जहाँ पर सच्चे लोग रहते हो उस स्थान को क्या कहा जाएगा? और फिर सोचने क़ी बात है कि जो लोग इस संसद को मंदिर कहते है, वे इस मंदिर के कैसे भक्त एवं पुजारी है? यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है. एक बात और चुभती है. ये सांसद तों हम लोगो द्वारा ही चुन कर भेजे जाते है. फिर हम उन्हें भ्रष्ट, नक्कारा, चोर एवं तस्कर आदि क्यों कहते है? और जब बहुत से लोग सबकी भलाई, उन्नति, विकाश एवं राष्ट्र सम्मान चाहते है तों उन्हीं में से कोई एक क्यों नहीं चुनाव मैदान में इन भ्रष्ट सांसदों को चुनौती देता है?
यह सब कही सुनी बातें है. और यह लिखने पढ़ने में ही अच्छी लगती है. इनका व्यावहारिक स्तर पर कोई मायने नहीं है. आज साठ-पैंसठ साल यही कहते, देखते और सुनते हो गया है. बड़े बड़े धुरंधर बड़े जोर शोर से बिगुल बजाते आते है. यत्र तत्र आवाज करने वाले पटाखे क़ी आवाज के समान आकाश में रंग बिरंगी चिंगारियां बिखेर कर क्षण भर के लिये आसमान को चित्र लिखित बनाते है. और फिर बचता क्या है? सिर्फ धुवें का अम्बार. दम घोटू विषैली गैस. वायु प्रदूषण का सशक्त माध्यम. और कुछ नहीं.
हम किसे मानें कि अमुक व्यक्ति सच्चा समाज सेवक एवं सत्यवादी है? क्या इस मंच पर सुन्दर सुन्दर शब्दों में विविध विशेषणों के माध्यम से दूसरो क़ी बुराई कर सुधार का अलख जगाने वाले को? या शहर बाज़ार में घूम घूम कर मुर्दाबाद-जिंदाबाद करने वाले को? या फिर आगजनी तोड़फोड़ आदि करने वाले को? या हड़ताल कर विविध संगठन, संस्थान या मिल-कारोबार को ठप कराने वाले को?
यह लिखने पढ़ने से कुछ नहीं होने वाला. यदि वास्तव में सुधार लाना है, संसद को मंदिर के रूप में स्थापित करना है, या जिस राम राज्य के सपने हम बुनते है, उसे साकार करना है तों गांधी क़ी लंगोटी से काम नहीं चलने वाला. चन्द्र शेखर आज़ाद बनना पडेगा. सुभाष चन्द्र बोष बनना पडेगा. कोई एक थप्पड़ मारे उसे उठाकर पटकना पडेगा. कोई चोरी करे उसे सीधे एवं सपाट रूप से मौत के घाट उतारना पडेगा. यह विदेशो से भीख मांग कर लाये गये चिथड़े में लिपटे भारतीय संविधान के तार तार हुए अनुच्छेदों के खोदने एवं पाटने से संभव नहीं है. जिसे जब चाहे मन मर्जी के मुताबिक बदल दिया. संसोधन कर दिया. न्याय एक. कानून एक, और सजा एक.
लेख उन को प्रभावित करता है जो इसे पढ़ें. इसे समझें.
राम के विनय करने से समुद्र लंका में जाने के लिये रास्ता नहीं देने वाला. इसके लिये लक्ष्मण के समान अग्नि वाण का संधान करना ही पडेगा.
काटेहि पे कदली फरे कोऊ जतन कोऊ सींच.
ऊसर में बीज डालने से कोई फ़ायदा नहीं है.
तैयार होइए
साजी चतुरंग वीर रंग में तुरंग चढ़ी सरजा शिवाजी जंग जीतन चलत है.
क्योकि अब कलम क़ी आवाज कोई सुनने वाला नहीं है. निर्वीर्य बनने से अच्छा है मौत को गले लगाना. कीड़े मकोडो क़ी भांति कूड़े के ढेर में घुस कर भिन भिनाने से कुछ नहीं होने वाला है.
सात बरस तक कुक्कुर जिए और अट्ठारह जिए सियार.
आज़ादी में क्षण इक जिए शतक गुलामी कौ धिक्कार.
(उन्मादी प्रलाप के लिये गुरुदेव क्षमा करेगें)
भारती

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