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भारत का दुर्भाग्य

संसद या सासत
संसद या सासत
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क्यों नहीं किसी दलित या मुस्लिम प्रतिनिधि ने अन्याय एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई, अनसन या आवाज़ उठायी? कहा गयी थी हिम्मत? कहा गया था मुस्लिम या दलित प्रतिनिधित्व?
हे धर्म एवं जाती के ठेकेदार अब जनता जागरूक हो गयी है. अब इन सब ठेकेदारों की बात जनता समझने लगी है. हर धर्म, जाती एवं स्थान के लोग जान गए है की यह अनसन या लड़ाई या संघर्ष किसी जाती, धर्म या स्थान के लिए नहीं था. यह अन्याय एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ था. अब उस पर आप यह नहीं थोप सकते की इसमें कोई मुसलमान या दलित नहीं था. दलित एवं मुसलमान के नाम के तवे पर अब बहुत रोटिया एवं चिकन बिरियानी पका चुके. दलितों को यह अच्छी तरह मालूम हो गया है की उनके घर में दो वक़्त की रोटी के लाले पड़े है जब की दलित नेता करोडो की माला गले में डाले घूमती है. मुसलमानों को उकसा कर दंगा फसाद करने के लिए भड़का कर उन्हें सड़क पर उतार दिया जाता है. उन्हें अपना काम एवं धर्म नहीं सिखा कर शियासत की लड़ाई में झोक कर खुद खीर पूड़ी एवं बिरियानी मलाई खाते है तथा जान माल का नुकसान आम गरीब मुसलमान को सहना पड़ता है.
गलती इनकी भी नहीं है. इनके पास इमाम बने रहने या दलितों पर राज करने के लिए और कोई दूसरा मुद्दा जो नहीं है. यही कारण है की खुद अन्ना की जगह भ्रष्टाचार एवं अन्याय के खिलाफ अनसन पर अपने धर्म या दलित के प्रति निधि के रूप में बैठने की हिम्मत नहीं दिखा सके तथा इस अनसन या लड़ाई को दूषित एवं विकृत बता रहे है.
“ऐ साधारण लोग! तुम्हारा काम है लाठी डंडे खाना, मेरे एक जायज या नाजायज़ नारे पर आँख बंद करके अपनी जिन्दगी तबाह कर देना तथा हमारे लिए वर्षा एवं धुप सहना और हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है वातानुकूलित आवास में रहना तथा क्षुद्र राज नीति को जन्म देकर तुम पर राज करना.”
यह नारा इन प्रतिनिधियों का है. इसी लिए अन्ना की लड़ाई को ये विकृत मानसिकता एवं ओछे विचार वाले लोग नहीं मान रहे है.

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