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बदबूदार संसद, सड़े सांसद और ज़हरीले मंत्री

संसद या सासत
संसद या सासत
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आज़ाद देश के गुलाम नागरिक
चौसठ पैसठ वर्ष की तथाकथित आज़ादी के बाद जो विरासत में हमें गुलामी मिली है वह इतिहास एवं पुराण में वर्णित प्राचीन बर्बर दास प्रथा से भी भयावह है. दास प्रथा में कम से कम मालिक अपने दासो का तो ख़याल रखता था. लेकिन आज तो मालिक दास का पसीना ही नहीं खून भी चूस ले रहा है. नीति, आदर्श, धर्म एवं न्याय तो जैसे सपने की चीज हो गयी है.
भला सोचें, आज जो जन प्रतिनिधि जनता से चुन कर गए है उन्हें जनता नहीं बल्कि जन प्रतिनिधि सर्वोच्च दिखाई दे रहे है. इन जाहिल, चोर, धोखेबाज़, राक्षस प्रतिनिधियों को यह बात क्यों नहीं समझ में आती कि संसद एवं संविधान जनता से है, जनता संविधान एवं संसद से नहीं है. जनता ने इन्हें अपनी सुख सुविधा एवं भलाई के लिए बनाया है. यदि संसद एवं संविधान जनता के हित एवं विकास में बाधक है तो उस संविधान को जनता नकार सकती है. लेकिन इन तथाकथित जन प्रतिनिधिनियो को जनता से क्या लेना देना? उन्हें तो जनता को गुमराह करने का कोई एक तरकीब चाहिए. तो इस प्रकार अब संविधान एवं संसद की दुहाई देकर जनता को ठगने की कोशिश कर रहे है.
हटाओ ऐसे संविधान, संसद, क़ानून एवं न्याय पालिका को. पहले भ्रष्टाचार को रोको. बाद में संविधान एवं संसद बनाना. जो लम्बी प्रक्रिया है उसे करते रहो, जिसकी तत्काल आवश्यकता है पहले उसे करो.
सरकार को यह भली भाँती जान लेना चाहिए कि यदि गाँधी सत्याग्रह कर सकते है तो सुभाष चन्द्र बोष, चन्द्र शेखर आज़ाद, खुदी राम बोष, लाला लाजपत राय, भगत सिंह, बाल गंगाधर तिलक, विपिन चन्द्र पाल, बाल कृष्ण गोखले, मंगल पाण्डेय सरीखे लोग भी भारत के सपूत के रूप में मौजूद है. सरकार को यत्न पूर्वक ऐसी परिस्थिति को उत्पन्न होने का मौक़ा नहीं देना चाहिए. संविधान, संसद, न्याय पालिका, कार्य पालिका तथा विधान पालिका इत्यादि गौड़ है. जनता सर्वोपरि है.
जो लोग भी संसद एवं संविधान की दुहाई दे रहे है वे निश्चित रूप से किसी न किसी प्रकार किसी घोटाले या भ्रष्टाचार से संलग्न है.
जब जनता इस संसद एवं संविधान में विश्वास नहीं करती है तो क्या संविधान विदेशियों के लिए बना है? जनता इस संविधान को अपने हित एवं विकास के लिए स्वीकार की थी. आज जनता इसमें अपना अहित एवं विनास देख रही है. यह जनता के ऊपर निर्भर करता है कि वह कौन सा संविधान बनायेगी या मानेगी. किसी नियम या क़ानून या संविधान को जनता के ऊपर जबरदस्ती नहीं थोपा जा सकता. जन प्रति निधि के नाम पर चुन कर भेजे गए इन रक्त शोषक जोंक स्वरुप आतंक वादी जन प्रतिनिधियों को यह बात अपने पापी एवं भ्रष्ट दिमाग में भली भाँती बिठा लेनी चाहिए.
बात आज अन्ना हजारे की आ रही है. उनके जन लोक पाल बिल से सब जन प्रतिनिधि घबराये हुए है. आखीर क्यों? क्या अन्ना किसी व्यक्ति के प्रति पक्षपात कर रहे है? क्या अन्ना देश हित के विपरीत कोई मांग रखे है? क्या अन्ना की मांग से देश की संप्रभुता को कोई खतरा है? क्या भ्रष्टा चार के खिलाफ आवाज़ उठाना अन्याय है? क्या सबके उत्तरदायित्व को सुनिश्चित कर उनको जबाब देह बनाना अपराध है? क्या प्रधान मंत्री या राष्ट्र पति या मुख्य न्यायाधीश आसमान से टपक कर आते है? यदि वे दूध के धुले है तो किसी जांच से घबराना क्यों? सोने को तो जितना तपायिये उसका रंग ही निखरता है. अरे नर पिशाचो अपराध करने पर तो इन्द्र तक को गद्दी छोडनी पड़ती है. अपराधी न होने पर भी भगवान राम को जांच के कठघरे में खडा होना पडा. क्या जन प्रतिनिधि का स्थान ईश्वर से भी ऊपर का हो गया? हाय रे लेखिका अरुणा राय! अरे सूप कहता तो बात भली लगती. चलनी भी छेद ढूँढना शुरू कर दी जिसके खुद के पेंदे में पता नहीं कितने छेद है. आज तक तो किसी ने आवाज़ उठाने की कोसिस नहीं की. और जब किसी ने आवाज़ उठायी तो कलेजे में टीस होने लगी? लेखिका महोदया! एक बार तो आप को चुप कराने के लिए बुकर पुरस्कार दिया जा चुका है. अब अन्ना पर टीका टिप्पड़ी कर के कौन सा पुरस्कार पाना चाहती है? यदि आप भ्रष्टाचार में सम्मिलित नहीं है तो फिर जन लोक पाल बिल का समर्थन क्यों नहीं करती? अभी एक क़ानून बना नहीं तब तक दूसरे का राग अलापने लगी. ताकि यह बिल क़ानून न बन पाये. पहले यह बिल क़ानून तो बनने दीजिये. फिर आवश्यकता के अनुसार देश काल एवं परिस्थिति को देख कर और भी क़ानून बन सकते है. या फिर नैतिकता, आदर्श एवं मानसिक दृढ़ता होगी तो आप स्वयं अनसन पर बैठ जाईयेगा. किन्तु आपको कहा हिम्मत है? आप तो सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए अन्ना के ऊपर ही हमला बोल दिया. लेखिका महोदया! आसमान पर थूका अपने ही मुंह पर आता है. ऐसा तो है नहीं कि अब कोई गांधी, जय प्रकाश या अन्ना हजारे पैदा ही नहीं होगा. फिर जनता की आवाज़ बुलंद होगी. फिर नया क़ानून बनेगा. हाँ, एक बात अवश्य है कि आप को हिम्मत नहीं है कि इस तरह आवाज़ बुलंद कर भ्रष्टाचार के खिलाफ बोल सकें. क्योकि फिर अगले किसी पुरस्कार के लिए आप को नामित नहीं किया जा सकता. और आप पुरस्कार पाने से महरूम हो जायेगी.
आप खुद ही सोचिये. अभी बेटा पैदा ही नहीं हुआ पोते के लिए स्कूल ड्रेस तैयार करने लगे. अभी भ्रष्ट, दुर्गन्ध पूर्ण संक्रामक रोग फैलाने वाले मछलियों रूपी जन प्रतिनिधि को भारत देश के पवित्र तालाब से निकाला ही नहीं गया, तब तक उसमें नए पानी को भरने की बात सोचने लगे. कही आप यह तो नहीं सोच रही है कि जब तक इस तालाब का पानी निकलेगा. फिर उसमें नया पानी भरा जाएगा. फिर नयी मछलियों का चुनाव होगा. तब तक तालाब के सारे कीड़े मकोडो को खाकर आप साफ़ कर लेगी? लगे रहिये, शायद आप की मनोकामना पूर्ण हो जाए.
कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी, अन्ना को भ्रष्ट कहा. तो मिस्टर तिवारी कुत्ते की उम्र महज आठ साल होती है. किन्तु सडियल कुत्ता कभी भी मर सकता है. उसकी उम्र कभी भी समाप्त हो सकती है. अब तो आपकी उम्र पांच साल भी नहीं रही. ढाई साल बाद भौन्कियेगा. जिस तरह से आवारा कुत्तो को म्युनिसिपालिटी वाले ज़हर का इंजेक्सन देकर मार डालते है. उसी तरह आपकी बिरादरी वाले आप को काट खायेगें. धीरज रखिये. अच्छा हुआ जो आप ने समझदार आकाओं से नसीहत लेकर तत्काल माफी मांग ली.
संविधान, संसद, न्याय पालिका आदि जनता की मर्जी से जनता के लिए एवं जनता के द्वारा बनायी जाती है. जनता यदि चाहती है कि जन लोक पाल बिल पास हो तो किसी कानूनी प्रक्रिया की ज़रुरत नहीं है. जनता ने सोच लिया तो आप कौन होते है उस पर पुनर्विचार करने वाले? कैसी देरी? किस तरह की बहस? क्या आप जनता से ऊपर हो गए है? मत दुहराओ 1857 की क्रान्ति को. बहुत लूट चुके हो. बहुत सारा काला धन स्विस बैंक में जमा कर चुके हो. कई पीढी तक ऐश करेगी. अब संतोष करो. मत किसी चन्द्र शेखर आज़ाद को मज़बूर करो खुद को गोली मारने के लिए. मत मज़बूर करो किसी सुभाष चन्द्र बोष को आज़ाद हिंद फौज बनाने के लिए. मत मज़बूर करो इस भारत को फिर से दो टुकड़ो में बटने के लिए. मत मज़बूर करो जनता को हिंसक बनने के लिए. मत मज़बूर करो देश वासियों को हथियार उठाने के लिए. याद करो संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसी दास की पंक्तियों को-
“गुण आगर नागर नर जोऊ. विश्व द्रोह तिष्ठई किमी सोऊ.”
अर्थात समस्त गुणों एवं संसाधनों से संपन्न होने पर भी जीव द्रोही जीवित नहीं रह सकता.

बाल भारती

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