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अन्ना की तुलना में गांधी

संसद या सासत
संसद या सासत
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संभवतः अन्ना की तुलना गांधी से करने वाले संकीर्ण विचार धारा, पूर्वाग्रह एवं कलुषित मानसिकता से ग्रसित है. गांधी जी की तुलना अन्ना से कदापि नहीं हो सकती. कारण यह है कि-
गांधी जी ने मात्र जवाहर लाल नेहरु को वजीरे आज़म बनाने के लिए देश को दो टुकड़ो में बटवा दिया. वरना पाकिस्तान के कायदे आज़म मुहम्मद अली जिन्ना जवाहर लाल नेहरु से कद व्यक्तित्व या ह़र मायने में आगे थे. जबकि अन्ना को बटवारा किसी भी कीमत पर वर्दास्त नहीं है.
पाकिस्तान एवं हिन्दुस्तान का बराबर हिस्से में बटवारा हो जाने के बाद भी अनसन करके पाकिस्तान के विकास के नाम पर पचपन करोड़ रूपये हिन्दुस्तान से दिलवा दिये. जबकि ह़र कुछ का बराबर बटवारा हो चुका था. उन्हें डर था कि कही फिर हिन्दुस्तान एवं पाकिस्तान का बटवारा रुक न जाय. अन्यथा नेहरु प्रधान मंत्री नहीं बन पाते. और अन्ना इसी अन्याय के खिलाफ हुंकार भर रहे है. भला अन्ना की तुलना गांधी से कैसी?
गांधी ने ऐसे आदमी को प्रधान मंत्री बनाने के पीछे नाना क्रिया कलाप को अंजाम दिये जो राजा हरी सिंह के द्वारा जम्मू एवं काश्मीर का संपूर्ण विलय भारत गण राज्य में नहीं कराया और आज उसी जम्मू एवं कश्मीर के कारण कितने देश वासी रोज ही कतला किये जा रहे है. इतनी उच्च बौद्धिक क्षमता भला अन्ना में कहा से आ सकती है?
गांधी केवल बाहरी दुश्मनों से लड़े थे. जबकि अन्ना को अपने घर के दुश्मनों से लड़ना पड़ रहा है. डाक्टर दूसरे के शरीर की शल्य चिकित्सा बड़े निर्मोही रूप में कर देता है. किन्तु यदि अपने किसी अँग का आपरेसन करना पड़े तो उसकी नानी याद आ जाती है.
जगह जगह पर मार काट मची रही लेकिन गांधी उस पर नियंत्रण नहीं कर सके. लेकिन अन्ना का ह़र ऐसी स्थिति पर पूरा नियंत्रण है.
गाँधी को अपने देश के नियम क़ानून, आचार व्यवहार या शिक्षा दीक्षा पर भरोसा नहीं था. उन्हें दक्षिण अफ्रिका में महान विद्वान् एवं प्रकांड प्रवक्ता दिखाई दिये. तथा वही पर उन्होंने शिक्षा ग्रहण की. अन्ना तो बेचारे किसी तरह कक्षा नवी ही पास कर सके. उन्हें अपने ही देश की शिक्षा सबसे ऊंची नज़र आई. ऐसे में अन्ना हजारे की तुलना भला गांधी से कैसे की जा सकती है?
भारतीय सेना की सशस्त्र सेवा में रहते अन्ना अनेको मेडल से नवाजे गए. भारत माता के सीमा की रक्षा एक चौकस एवं सजग प्रहरी की तरह आंधी, वर्षा, तूफ़ान, बर्फ, झाडी, जंगल एवं कड़ कडाती धुप में रह कर किये. गांधी ने तो कभी जोजीला दर्रा, कारगिल, ग्लेशियर, नाथुला बार्डर या राजस्थान के सरदार शहर या चुरू की जलती रेत को देखने की ज़हमत ही नहीं उठायी. गांधी को इन सब मेडल की क्या आवश्यकता थी.?
गांधी की नेक नीयती के कारण ही सुभाष चन्द्र बोष को विदेश में जाकर आज़ाद हिंद फौज खड़ी करनी पडी. तथा अंग्रेजो को उन्ही की भाषा में जबाब दिया चन्द्र शेखर आज़ाद, भगत सिंह, खुदी राम बोष आदि अनेको वीर शहीद मातृ भूमि पर अपना शीश चढ़ा दिये. गोरी चमड़ी वालो को यह पता चल गया कि अभी पता नहीं कितने ऐसे हिन्दुस्तानी देश भक्त है. जो ईंट का जबाब पत्थर से दे सकते है. अंग्रेज गांधी की लंगोटी या सड़ी लाठी जो खुद गांधी का भार ढो सकने में भी असमर्थ थी और उनको दूसरों (कौन दूसरे?) के कंधे का सहारा लेकर चलना पड़ता था उससे डर कर नहीं गए. और जयन्ती तथा मरण तिथि गांधी की मनाई जाती है. उस दिन राज पत्रित अवकाश भी होता है. कारण यह की स्वंतत्र भारत में कांग्रेस की सरकार गांधी के ही दुराग्रह से बनी थी. तो जयन्ती एवं पुण्य तिथि तो गांधी की ही मनाई जायेगी. वीर शहीदों को कौन पूछता है जिन्होंने हंसते हंसते फांसी का फंदा अपने गले में लगा लिया. भारत की आज़ादी के बाद गांधी ज़िंदा थे. क्या उनको इन शहीदों की याद नहीं आई. तथा देश वासियों द्वारा अपनी जयन्ती मनाने पर इतराते रहे. गांधी ने एक बार भी नहीं कहा कि उन शहीदों के नाम पर वर्ष में एक बार राज़पत्रित अवकाश तो घोषित कर दिया जाय. इससे उनको क्या लेना देना? उनकी तो जयन्ती मनाई ही जाती है. भला अन्ना की तुलना गांधी से कैसे की जा सकती है?
गांधी के पोते पड़पोते आज़ाद भारत के स्वर्गीय सुख तो भोग ही रहे है. कोई सांसद तो कोई मंत्री बना है. ऊंचे ओहदे पर विराज मान है. अन्ना के आगे पीछे कौन है? ऐसे निर्वन्शी अन्ना की तुलना भला गांधी से कैसे की जा सकती है?
जो कोई भी गांधी की तुलना अन्ना हजारे से करता है. वह वाकई मूरख एवं गंवार है.
बाल भारती

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